क्रियाकलाप

वार्ली 'लोक कला' 

मूलतः महाराष्ट्र और छत्तीस गढ़ की लोक कला है (चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय की चित्रकला की एम. ए.


की कक्षाओं में यह पाठ्यक्रम में है) मेरे विद्यार्थी इस विधा में पारंगत हो गए हैं। 

श्री संतोष कुमार यादव की कलात्मक अवधारणा से शहर विविध कलाओं के लिए पहचाना जा रहा है, उसी 


कड़ी में मेरे विद्यार्थियों ने एक बड़ा 

अभियान उनकी अवधारणा और अपनी कला को जन सामान्य तक ले जाने के प्राधिकरण के इस आमंत्रण से 

बड़ा योगदान और क्या हो सकता है  लिए शुरू किया है इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है! 


(वारली एक प्रकार की जनजाति है । जो महाराष्ट्र् राज्य के थाने जिले के धानु, तलासरी एवं ज्वाहर तालुकाज में मुख्यत: दूसरी जनजातियों के साथ पायी जाती है । ये बहुत मेहनती और कृषि प्रदान लोग होते है । जो बास, लकडी, घास एवं मिट्टी से बनी टाइलस से बनी झोपडियों में रहतें है । झोपडियों की दीवारे लाल काडू मिट्टि एवं बांस से बांध कर बनाई जाती है, दीवारो को पहले लाल मिट्टि से लेपा जाता है उसके बाद ऊपर से गाय के गोबर से लिपाई की जाती है । वारली चित्रकला एक प्राचीन भारतीय कला है जो की महाराष्ट्र की एक जनजाति वारली द्वारा बनाई जाती है। और यह कला उनके जीवन के मूल सिद्धांतो को प्रस्तुत करती है। इन चित्रों में मुख्यतः फसल पैदावार ऋतु, शादी, उत्सव, जन्म, और धार्मिकता को दर्शाया जाता है। यह कला वारली जनजाति के सरल जीवन को भी दर्शाती है। वारली कलाओं के प्रमुख विषयों में शादी का बड़ा स्थान हैं। शादी के चित्रों में देव, पलघाट, पक्षी, पेड़, पुरुष और महिलायें साथ में नाचते हुए दर्शाए जाते है।[1][2])


















अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद -2014 

कला उत्सव में निर्मित और चित्रों की 

अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद -2013


ने गाजियाबाद को बहुत कुछ दिया है जिसमें लगभग 50 पेंटिंग्स और 12 मूर्तिशिल्प 
जिसमें कुछ तो तैयार हो गए हैं और कुछ तैयार होने की प्रक्रिया में हैं .
पद्मश्री वी राम सुतार, श्री उदय प्रताप सिंह और श्रीमती चित्रा मुद्गल ने इस उत्सव की जैसी अवधारणा की 
अपेक्षा की थी, उसे समापन अवसर पर प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने जिस तरह से सराहा और उत्तर प्रदेश में कला के इन आयामों को बढ़ने की बात की उससे कलाकारों, कलाप्रेमीयों, कलाविद्यार्थियों,विविध संस्कृतिकर्मियों एवं आयोजकों को जिस तरह का साहस मिला, उससे पूरे कार्यक्रम के संयोजकत्व का उत्तरदायित्व निर्वहन से आई थकान छू हो गयी है।
श्री संतोष कुमार यादव (संरक्षक-अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद -2013) अध्यक्ष/उपाध्यक्ष - गाजियाबाद विकास प्राधिकरण गाजियाबाद के साथ जिस सपने को बुना था उसे वही यह रूप दे सकते हैं यह पुनः तय हो गया अन्यथा 'कलाधाम' के उपयोगिता पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया था। सांस्कृतिक उत्थान के 'कलाधाम' के जिस दूसरे चरण की घोषणा उन्होंने "मूर्तिकला पार्क" के रूप में की है वह निश्चित तौर पर जिले की शकल सवारने में कामयाबी दिलाएगा। 
श्री एस वी एस रंगा राव-जिलाधिकारी ने जिस तरह की रुचि इन कलाओं में ली है, उससे जनपदवासियों में कलाओं के प्रति बड़ा सन्देश जाएगा .
इस कार्यक्रम के सफल आयोजन में जिस तरह से व्यवस्था को श्री डी . पी . सिंह विशेष कार्य अधिकारी - गाजियाबाद विकास प्राधिकरण गाजियाबाद ने ली और अपने सहयोगियों को निर्देशित किये उससे प्राधिकरण की नई कार्यप्रणाली सम्मुख आयी .
तमाम खट्टे मीठे अनुभवों को समेटे उनलोगों ने जिन्हें कला समझ आती हो या न आती हो उनका भी योगदान रहा और उसी में   वह भी जुटे रहे।
मेरे विद्यार्थियों एवं मित्रों ने जिस तरह का सहयोग दिया वह हमेश स्मरणीय रहेगा।








   

क्रियाकलाप ;
अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद-2006 ‘कलाधाम’ डी-ब्लाक,कविनगर,गाजियाबाद में आयोजित प्रथम कार्यक्रम की बुकलेट ;
 






















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कला उत्सव 2006 की छवियाँ-

कला
राज्य ललित कला अकादेमी की क्षेत्रीय प्रदर्शनी -2004
आमुख:
चित्रकार की अभिव्यक्ति का माध्यम शब्द नहीं चित्र है, साधन वाणी नहीं तूलिका एवं रंग है। किन्तु शाब्दिक अभिव्यक्ति के बिना आयोजन का निहितार्थ आपके सम्मुख रख पाना सम्भवतः उतना सरल न होता।
यह एक सुखद संयोग है कि इस बार नववर्षारम्भ पर नगर में राज्य ललित कला  अकादमी, उत्तर प्रदेश ने क्षेत्रीय प्रदर्शनी का आयोजन किया है। जिसके लिए यह चित्र विवरण-पुस्तिका (कैटलाॅग) आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे हर्ष, सन्तोष एवं किंचित गर्व की संशलिष्ट अनुभूति हो रही है। कृति की पूर्णता का एहसास ही ऐसा है। जिस प्रकार इस बार के आयोजन का दायित्व मुझे सौपा गया जिसमे संसाधन सीमित थे, चुनौती जटिल थी। शैक्षणिक, रचनात्मक एवं पारिवारिक व्यस्तता के बावजूद यदि मैने इस श्रमसाध्य दायित्व को स्वीकार किया तो उसके पीछे दो स्पष्ट उद्देश्य थे, प्रथम कला के पठन-पाठन की दीर्घ परंम्परा के उपरांत भी यह नगर कला के क्षेत्र मे अपनी पहचान दर्ज नही करा सका। औधोगिक नगरी कला जगत मे एक प्रमुख केद्र के रूप मे विकसित हो एक कलाकार के रूप मे यह मेरी सहज आकांक्षा एवं मेरे अनवरत् रचनात्मक संघर्ष का लक्ष्य भी। दूसरा प्रदर्शनी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनेक नवोदित चित्रकारो को वरिष्ठ चित्रकारो के साथ अपनी सृजनात्मक प्रतिभा को प्रामाणिक रूप से अंकित कराने का अवसर उपलब्ध करायेगी। यही नवोदित कलाकार कालक्रम से कला क्षितिज के दैदिप्यमान नक्षत्र बनेगें ऐसा मेरा विश्वास है। इन्ही उद्देश्यो की पूर्ती ने मेरे प्रयास की सार्थकता है।
कार्यक्रम का आयोजन प्रशासन के सक्रिय सहयोग और सद्भावना के बिना सम्भव न होता जिस प्रकार श्री संतोष कुमार यादव, जिलाधिकारी गाजियाबाद ने आयोजन के प्रत्येक स्तर पर सूझाव, मार्ग दर्शन एवं उत्साहवर्द्धन किया, मै एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समस्त चित्रकार उनके प्रति हृदय से आभारी रहेगे।
राज्य ललित कला अकादमी के पदाधिकारीयो एवं कार्यक्रम कि सनयोजिका ने मुझे इस दायित्व के योग्य समझा, मै उनका जितना भी आभार व्यक्त करूॅं कम है।
मुझ पर अटूट विश्वास करने वाले संयोजन समिति के सम्मानित सदस्यो का आभार व्यक्त करना उनके लिए मेरा दुस्साहस ही होगा। विशेष रूप से श्री जितेन हाजारिका एवं डा0 राम शब्द सिह, जो समय समय पर सुझाव देते रहे। उनके बारे मे कुछ भी कहना सूर्य के दीप दिखाने के तुल्य होगा। मै आभारी हूॅ पश्चिम उत्तर प्रदेश के उन तमाम रचना धर्मियो का जिन्होने इस कार्यक्रम की सफलता के लिए अपनी कलाकृतिया भेज कर सहयोग किया। संसाधन एकत्रित करने मे सहयोग करने वाले शुभेच्क्षुआ,े अथक परिश्रम करने वाले विधार्थियो एवं सहयोगियो के प्रति आभार प्रकट करना मेरा कर्तव्य है। 
उन महानुभावो को जिन्होने अपने व्यस्ततम समय से अवसर निकाल कर कार्यक्र्रम की शोभा बढायी मै उनका हृदय से आभारी हूॅ।
डाॅ0 लाल रत्नाकर
संयोजक 






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