नजरिया

 कलाओं की ओर बढ़ता गाजियाबाद 
( अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद-2013 के विशेष सन्दर्भ में )  

डॉ.लाल रत्नाकर         
          
इस वर्ष के अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद की चर्चा हो उससे पहले हमें गाजियाबाद में कलाओं के उद्भव को जानना लाजिमी होगा, गाजियाबाद देश की राजधानी दिल्ली (राष्ट््रीय राजधानी क्षेत्र) के करीब का शहर होने के साथ साथ उत्तर प्रदेश का एक औधोगिक शहर है इसका विकास जितने अल्प समय मे हुआ है निश्चित रूप से यह प्रतीत होता है कि भविष्य मे यह शहर विभिन्न विधाओ का केन्द्र बनेगा। ऐसे मे समय की मांग है कि इस शहर मंे कला एंव सांस्कृतिक गतिविधियों का विकास हो। अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद के तत्वाधान में 2004,2005,2006 के उपरान्त इस वर्ष 2013 का आयोजन कई मायने में गाजियाबाद की कला के विकास में मील का पत्थर सावित हुआ है।  लम्बे अन्तराल के उपरान्त गाजियाबाद में अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद-2013 का आयोजन इसलिए सम्भव हो पाया क्योंकि कलाप्रेमी श्री संतोष कुमार यादव का संरक्षकत्व मिला निश्चित रूप से यह अवधारणा पुर्नस्थापित हुयी कि कलाआंे के समुचित विकास के लिए संरक्षकत्व की महति आवश्यकता है। गाजियाबाद जहां नगरीय विकास की अपनी अवधारणा में प्रगतिगामी है, वैश्विक मान्यताओं के अनुरूप अपना स्वरूप गढ़ने में अग्रणी है यद्यपि उनका उद्येश्य व्यवसायिक ही है, पर भले ही आज उन्हें इसबात की जरूरत महसूश न हो पर कहीं न कहीं हमें हमारी उन परम्पराओं को भी जीवित रखते हुए उन्हें प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इन्हीं उद्येश्यों की पूर्ति के लिए सांस्कृतिक गतिविधियां बढ़ाई जानी आवश्यक हैं, जिसे प्रशासन ने एक आयाम दिया है जिसमें ‘कलाधाम’ का निर्माण ही इन्हीं उद्येश्यों की पूर्ति के लिए गाजियाबाद विकास प्राधिकरण गाजियाबाद द्वारा कराया गया है।

हमेशा की तरह इसबार भी देश के कोने कोने से मूर्तिकारों एवं चित्रकारों की एक बड़ी टीम जिसमें युवा एवं वृद्ध समान रूप से शरीक हुए हैं जिनका उल्लेख आगे किया जाएगा। इस कला उत्सव में मूर्तिकारों को अधिक समय और चित्रकारों को अपेक्षाकृत कम समय की जरूरत होती है इसीलिए मूर्तिशिल्पी फरवरी,24,2013 को ही आ गए जिससे वह अपना कार्य समय से आरम्भ कर सकें और तय समय के भीतर पूरा कर लें। अतः मूर्तिकला कार्यशाला के आयोजन का आरम्भ फरवरी,25,2013 को 11 बजे मुख्य अतिथि के रूप में पधारे पद्मश्री राम वी. सुतार के करकमलों द्वारा हुआ जिसकी अध्यक्षता संतोष कुमार यादव, उपाध्यक्ष, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने की संरक्षकत्व का दायित्व एस.वी.एस. रंगाराव जिलाधिकारी गाजियाबाद ने निर्वहन किया, इस अवसर पर सुश्री किरन यादव यातायात पुलिस अधीक्षक एस.वी राठौर एवं डी.पी.सिंह विशेष कार्याधिकारी गा.वि.प्रा. ने इस    निहायत सादे समारोह में अतिथियों को उनके किट और पुष्पगुच्छ प्रदान किए। तद्परान्त मुख्य अतिथि पद्मश्री राम वी. सुतार ने इस अवसर पर मूर्तिकला कार्यशाला का शुभारम्भ एक विशाल शिला पर अपने कुशल शिल्पी अन्दाज में जिस सधे अन्दाज से आघात लगाए तो कलाधाम का प्रांगण फिर से उस अट्हास से उन्मादित हो उठा इस अवसर पर राजस्थान से बुलाए गए मूर्तिकारों के सहायकों का भी स्वागत किया गया। नगर से पधारे कला प्रेमी, पत्रकारगण, कला विद्यार्थियों एवं गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अधिकारीगण, अभियन्तागण, अभियन्त्रण सेवाओं एवं अन्य कर्मचारीगण के सम्मुख मूर्तिकारों ने अपनी शिलाओं को चिन्हित किया। संयोजकत्व एवं सहभागी मूर्तिकार का दायित्व भी लेखक ने निर्वहन किया एवं कार्यक्रम का संचालन डा.प्रकाश चैधरी ने किया।  

मूर्तिकारों ने अपने किट से एप्रिन निकाले पहने स्केच बुक पर कुछ आडी तिरछी रेखाएं खींचनी आरम्भ की, फिर क्या था कलाधाम परिसर में हथौड़े और छेनियों की झनकार और ग्राईण्डरों का शोर उनसे निकलते हुए आकार दर्शकों की जिज्ञासा और काले मार्बल में बनते आकार कलाकारों की चहल कदमी आपसी हालचाल और उनके काम का हल्का से आकलन फिर क्रेन से शिलाओं का नियन्त्रण इस प्रकार आरम्भ हुयी मूर्तिकलाओं की कार्यशाला। पूरे परिसर में संगीतलहरी के साथ सर्द हवाएं सायंकाल तक कोई रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है। दर्शकों का कौतुहल बना हुआ है आकार दिखाई तो दे रहे हैं पर वे आकलन नहीं कर पा रहे हैं क्या बनेगा, एक तरफ से हताश दूसरे मूर्तिकार से वही सवाल क्या बना रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि इनमें असली मूर्तिकार कौन हैं, जो शिलाओं को तोड़ रहे हैं या जो उन्हें निर्देशन कर रहे हैं, अद्भूद संगम है।  यहां यह बताना जरूरी है कि अब तक जितने भी कैम्प यहां आयोजित हुए हैं उनमें काला मारबल ही प्रयोग किया गया है। आइए बताते हैं कौन कौन हैं इसबार के मूर्तिकार और ये कहां से यहां आए हैं -  पहले चलते हैं तारक ‘दा’ के पास इनका पूरा नाम है श्री तारक गरई यह कोलकाता से आए हैं ये इससे पहले भी सम्पन्न कला उत्सव में शरीक रहे हैं 2006 और 2007 स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाले समकालीन मूर्तिकार हैं अन्र्तराष्ट््रीय ख्यातिलब्ध तारक दा शान्ति निकेतन से कला की शिक्षा के बाद अपनी एक पहचान बनाए हैं, सभी माध्यमों में बंहुत ही निपुणता से कार्य में दक्ष हैं साथ ही अन्य कलाओं में भी अपनी दखलंदाजी रखने वाले दादा सरल और मृदुल स्वभाव के व्यक्ति हैं। 2006 के कैम्प की इनकी एक समूह प्रतिमा जिसमें तीन प्रतिमाएं बनायी गयी थीं जिन्हें कलाधाम में स्थापित करते समय अलग अलग कर दिया गया जिससे उसकी भव्यता तो कम ही हुई और अर्थहीन भी हो गयी, इससे दादा को पता चला तो बहुत दुख हुआ, संयोजक के नाते मैंने पुनः उन्हें गाजियाबाद आने के लिए राजी किया, जब यह बात उपाध्यक्ष महोदय को पता लगी तो उन्होंने दादा को आश्वस्त किया कि इसे संयोजित कर समुचित और उपयुक्त स्थान पर लगवाया जाएगा। इसबार दादा ने तीन विशाल शिलाखंड लगभग 10 फुट ऊंचाई का वरण किया और उनको संयोजित कर ‘बुद्ध’ का विशाल चेहरा निरूपित किया, इसे बनाने में तीन सहयोगी कारबरों के साथ 15 दिनों तक निरन्तर कार्य किए। इसी क्रम में उन्होने एक और शिलाखंण्ड को आकार दिया जिसका नाम ‘कृष्ण’ रखा। दादा का गाजियाबाद से बहुत ही अपनेपन का सम्बन्ध हो गया है उन्हें यहां कला के विकास की असीम सम्भावनाएं दिखती हैं। यही तो बात है जिसके लिए उन्होने मूर्तियों के एक पार्क की मांग कर डाली। 

सी.पी.चैधरी उदयपुर राजस्थान से हैं यह राष्ट््रीय स्तर के वरिष्ठ मूर्तिकार हैं यह गाजियाबाद के अखिल भारतीय कला उत्सव में पहली बार शरीक हुए इन्होंने ‘खिड़की’ की रचना की है।  रतन लाल कन्सोडरिया अहमदाबाद गुजरात के जानेमाने मूर्तिकार हैं यह पहलीबार गाजियाबाद के अखिल भारतीय कला उत्सव में सिरकत किए हैं इन्होंने यहां जल संरक्षण पर अपना शिल्प तैयार किया हैं।  नागप्पा प्रधानी बंगलौर कर्नाटक से है विश्वभारती कला निकेतन शान्तिनिकेतन से शिक्षा लेकर के कला महाविद्यालय बंगलौर कर्नाटक मूर्तिकला विभाग में प्राध्यापक हैं पहलीबार गाजियाबाद के अखिल भारतीय कला उत्सव में शरीक हुए हैं ‘कम्पोजिशन’ नाम से आधुनिक शिल्प बनाया है।   शिब प्रसाद बरार रायपुर छत्तीसगढ़ से आए ‘मदरचाईल्ड’ शीर्षक से एक शिल्प तैयार किए हैं।  अशोक कुमार महापात्रा पुरी उड़ीसा से हैं इन्होंने ‘मूर्तिकार’ परम्परागत शैली में बनाया है।  सुशान्त कुण्डू मुम्बई महाराष्ट्र् से आए ये गाजियाबाद के कला आन्दोलन के सक्रिय युवा है मूर्तिकला कैम्प की तैयारी में हमेशा से इनका सहयोग रहा है, पहले गाजियाबाद आ जाना और सबसे बाद में जाना। युवा मूर्तिकार के नाते समकालीन कला पर गहरी पकड़, रचना की कसौटी पर खरे सुशान्त मेरे इस आयोजन के प्रमुख हिस्से से हो गए हैं।  पी.इलाचेन्झियन युवा मूर्तिकार हैं तमिलनाडु से पधारे चेन्झियन अनेक माध्यमों में दक्ष हैं इनके मेटल के काम तो बहुत ही गजब के हैं। यहां पर जो वृषभ इन्होंने बनाया है अब वह पुराने बस अड्डे के चैराहे पर विराजमान है।  नीलेश शिन्दे नागपुर महाराष्ट््र के युवा मूर्तिकार हैं गाजियाबाद पहलीबार आना हुआ पर अपने कौशल का प्रदर्शन जिस शिलाखण्ड में दिखाया है वह समकालीन मूर्तिशिल्प का नमूना है जिसे ‘सूरज और चांद’ शीर्षक दिया है।  परमिन्दर सिंह सन्धू पंजाब से आए और पहाड़ सी शिला चुनी और गढ़ दिया उसे जिसके अर्थ तलासते रहें लोग।  शिवान और कुमार सन्तोष जो गाजियाबाद से हैं ने भी आकृतियां तराशी हैं।  इन सब के साथ मुझे भी तारक दा ने लगा दिया उस विशाल शिलाखण्ड को गढ़ने के लिए जिसमें मुख्य अतिथि पद्मश्री राम वी. सुतार ने मूर्तिकला कार्यशाला का शुभारम्भ उसी विशाल शिला पर अपने कुशल शिल्पी अन्दाज में जिस सधे अन्दाज से आघात लगाए थे। मैने अपने कला पात्रों को रूपायित किया जिसमें आगे पीछे अनेक लोग जुड़ते गए कुल संख्या हो गयी सात, एक दूसरे को सहारा देते मानवीय सम्वेदनाओं को समेटे बिना सिर के सात लोग एक साथ आ गए।  यह सारे मूर्तिकार लगातार अपने कार्य मार्च,04,2013 तक पूरा करने का प्रयत्न तो किए लेकिन इसबार की शिलाओं का आकंर इतना विशाल था जो सामन्यतया किसी भी कैम्प में नहीं दिया जाता, परन्तु सभी ने अपने मनोयोग से अपने समस्त कार्यों को पूरा ही कर लिया था। 

चित्रकारों की कार्यशाला फरवरी,27, 2013 को श्री उदय प्रताप सिंह अध्यक्ष हिन्दी संस्थान उ.प्र. एवं प्रख्यात साहित्यकर्मी श्रीमती चित्रा मुद्गल जी के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ जिसकी अध्यक्षता संतोष कुमार यादव, उपाध्यक्ष, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने की संरक्षकत्व का दायित्व एस.वी.एस. रंगाराव जिलाधिकारी गाजियाबाद ने निर्वहन किया, इस अवसर पर एस.वी राठौर एवं डी.पी.सिंह विशेष कार्याधिकारी गा.वि.प्रा. ने इस निहायत सादे समारोह में अतिथियों को उनके किट और पुष्पगुच्छ प्रदान किए कार्यक्रम का संचालन विनोद वर्मा ने किया।   अगर देखा जाय तो कलाएं हमारे समाज का प्रतिनिधित्व भी करती हैं, वे केवल एक सजावट की सामग्री नहीं हैं इनमें कलाकार की अपनी अभिव्यक्ति भी है।   इसबार जो चित्रकार इसमें शिरकत किए वे इस प्रकार हैं श्री आलोक भट्टाचार्य कोलकाता, श्री भंवर सिंह पंवार, अहमदाबाद, गुजरात. श्री प्रेम सिंह, नोएडा. श्री आर.के. यादव, नई दिल्ली, श्री राव साहब गुरवु, पुणे, महाराष्ट््र, श्री मुरली लाहुटी पुणे, महाराष्ट््र, श्री अशोक भौमिक, नई दिल्ली, डा. राम शब्द सिंह, सहारनपुर, श्री मनोज बालियान, नई दिल्ली, श्रीमती डा. लता वर्मा, गाजियाबाद, श्रीमती कविता बालियान, गाजियाबाद, श्री कुमार संतोश, गाजियाबाद, श्रीमती रेनू यादव, गाजियाबाद, डा. अल्का चडढ़ा, मेरठ, श्रीमती प्रियंका जैन, सोनीपत, हरियाणा, श्रीमती रजनी, फरीदाबाद, हरियाणा, डा.दल श्रृंगार प्रजापति, मोदी नगर, गाजियाबाद। अरविन्द कुमार, गाजियाबाद. श्रीमती सीमा भाटी, गाजियाबाद, श्रीमती प्रीति वर्मा, गाजियाबाद, यदु एवं पुरू गाजियाबाद से इनके अतिरिक्त अनेक वे लोग भी शरीक हुए जो कुछ करना चाहते थे।  अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में इस कैम्प के दरमियान सायंकालीन दैनिक कार्यक्रम चलता रहा जिनमें कवि सम्मेलन, मंचन, नृत्य एवं नृत्य नाटिकाएं भी आयोजित हुईं प्रमुख रूप से इसमें जो कवि शरीक हुए उनमें डा. लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, निदेशक-आकाशवाणी, श्रीमती कीर्ति काले, विष्णु सक्सेना, पापुलर मेरठी, देवल अशीष, सुरेंद्र दुबे, विजेंन्द्र परवाज, नवाज देवबंदी, मासूम गाजियाबादी। गान्धर्व संगीत महाविद्यालय के कलाकार, वी.एम.एल.जी. कालेज गाजियाबाद की छात्राएं, एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद के छात्र छात्राएं, आजमगढ़ से पंडित नाट्य मंच। सारंगा, नई दिल्ली आदि ने अपने अभिनय से दर्शकों एवं कलाकारों की वाह वाहियां बटोरी। ़ 
अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद-2013 के प्रायोजक आम्रपाली ग्रुप थे गा0 वि0 प्रा0 गाजियाबाद के तत्वाधान में इस कला उत्सव में निर्मित मूर्तियां एवं कलाकृतियां अपने तरह की एक अमूल्य निधि हैं।  
पूरा आयोजन दिनांक.04 मार्च 2013 को प्रो0 राम गोपाल यादव सांसद व नेता संसदीय दल लोकसभा समाजवादी पार्टी के द्वारा समापन की रस्म को पूरा किए सम्पूर्ण कला उत्सव में निर्मित मूर्तियां एवं कलाकृतियांे का अवलोकन कर प्रो0 यादव ने इनकी प्रासांगिता पर बल देते हुए राष्ट््र के कोने कोने से आए हुए कलाकारों का आभार ज्ञापित किए कि वह अपने कौशल से इस शहर के लिए बेशकिमती कलाकृतियां तैयार कर रहे हैं यह शहर हमेशा इन्हें याद रखेगा। प्रो0 यादव ने उपाध्यक्ष, जिलाधिकारी, सचिव व समस्त गा0 वि0 प्रा0 गाजियाबाद के अधिकारियों की प्रशंसा करते हुए मुझे (लेखक) भी हिम्मत बधाई कि मैं अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद के संयोजकत्व का दायित्व पूराकर पा रहा हूं। इस अवसर पर कलाप्रेमी नगरवासी, छात्र छात्राएं एवं समस्त कलाकार शामिल हुए।  
कलाओं की ओर बढ़ते गाजियाबाद की कला संकल्पना का एक चरण और आगे बढ़ा जिसमें कलकारों की मांग पर उपाध्यक्ष गा0 वि0 प्रा0 गाजियाबाद से मशविरा कर मूर्तिकला पार्क के निर्माण की प्रो0 राम गोपाल यादव द्वारा घोषणा की गयी जिसका श्री अखिलेश यादव मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश ने गाजियाबाद आगमन पर संजय नगर में ‘मूर्तिकला पार्क’ का शिलान्यास भी किया ।
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(लेखकः प्रख्यात चित्रकार हैं,अखिल भारतीय कला उत्सव गाजियाबाद के संयोजक हैं, एम.एम.एच.कालेज गाजियाबाद मे चित्रकला विभाग के अध्यक्ष)  
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समाचार पत्रों से 
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कला महोत्सव का आगाज

गाजियाबाद : कला के विविध आयामों को समर्पित कलाधाम में कला महोत्सव का आगाज हुआ। महोत्सव का शुभारंभ मूर्तिकार पदम श्री रामवी सुतार ने किया।
सोमवार को कला महोत्सव में रामवी सुतार ने पत्थर पर हथौड़ा मारकर महोत्सव का शुभारंभ किया। जिलाधिकारी ने उन्हें शॉल पहनाकर स्वागत-सत्कार किया। इस मौके पर जीडीए उपाध्यक्ष संतोष कुमार यादव ने कहा कि गाजियाबाद में कला को विकसित करने के लिए कला महोत्सव को दूसरी बार शुरू किया गया है। महोत्सव के संयोजक डा. लाल रत्नाकर ने बताया कि कोई भी कलाकार अपनी मौलिक रचनाओं के आवेदन के साथ कलाधाम में कलाकृति बना सकता है।महोत्सव में देश के कोने कोने से प्रख्यात मूर्तिकार आए और उन्होंने अपनी भावनाएं पत्थरों पर उकेरी। इस मौके पर एसपी ट्रैफिक किरण यादव,डीपी सिंह,सीपी चौधरी मौजूद थे।
फूल की तरह खिलना चाहिए कलाकार को : रामवी सुतार
कला मनोरंजन नहीं है, बल्कि वह ऐतिहासिक रचना है जो एक बार बनने के बाद इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर हो जाती है। जैसे बाग में खिले फूल को कोई तोडे़ या न तोड़े लेकिन फूल का काम खिलना है, ठीक उसी तरह कलाकार की कला को कोई सराहे या न सराहे, उसका कार्य कलाकृति बनाना है। कला से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें प्रख्यात मूर्तिकार पदमश्री रामवी सुतार ने कही।
देश के किसी भी कोने में आप जाए और कहीं भी यदि महात्मा गांधी की मूर्ति मिले तो, समझ लेना कि यह मूर्ति रामवी सुतार ने बनाई है। देश भर में गांधी जी की सर्वाधिक मूर्तियां बनाने वाले सुतार ने दैनिक जागरण से हुई बातचीत में कहा कि उन्हें गांधी जी की मूर्तियां बनाना बेहद पसंद है। हालांकि मौजूदा समय में मूर्तिकला मंहगाई की मार से सबसे ज्यादा जूझ रही है। पत्थर पर दिन रात चोट करके,उसे तराश कर जब मूर्तिकार उसे बाजार में बेचता है तो अधिकतर मूर्ति इसलिए नहीं बिक पाती, क्योंकि उनकी कीमत बहुत अधिक होती है और यहीं से कहीं न कहीं मूर्तिकार हताश होने लगता है। लेकिन हताश होने से कुछ नहीं होता। कलाकार के लिए धन ही सब कुछ नहीं होना चाहिए। वह बताते हैं, यदि आप कोई मूर्ति, कलाकृति अपने दोस्त,पड़ोसी को बनाकर देते हैं तो वह कलाकृति भी आपको प्रशंसा दिलाती है। इसलिए कलाकार को कला को सदैव धन से नहीं जोड़ना चाहिए।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में विशेषकर मूर्तिकला के क्षेत्र में कोई सरकारी सहायता भी न होने से भी मूर्तिकला का विस्तार नहीं हो पा रहा है। भारत की अपेक्षा विदेश में इस कला के कद्रदान अधिक हैं।
दस एकड़ में विकसित होगा शिल्पकार पार्क-
जागरण संवाद केंद्र, गाजियाबाद : गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) शिल्पकारी का शौक रखने वाले कलाकारों को कला निखारने का मौका देगा।
संजय नगर सेक्टर-23 में बन रहे पार्क को और आधुनिक बनाने के लिए कला महोत्सव संपन्न होने के बाद स्कल्पचर (शिल्पकार) पार्क के रूप में विकसित किया जाएगा। यह आम लोगों के लिए पूरी तरह से निशुल्क होगा। प्राधिकरण उपाध्यक्ष संतोष कुमार यादव ने बताया कि पार्क में महानगर के लोग शुद्ध आबोहवा का आनंद उठाने के साथ-साथ शिल्पकारी का भी आनंद ले सकेंगे। इसमें अन्य सुविधाओं की भी व्यवस्था की जाएगी। बुजुर्गो के बैठने के लिए बेच तो बच्चों के खेलने की व्यवस्था की जाएगी। आधुनिक विकसित पार्क में अधिकारी व आम जनता एक साथ घूम सकेंगे। साथ ही मनोरंजन व पिकनिक के साथ पार्क में समय बीताने के लिए अनेक संसाधन उपलब्ध होंगे।
उनका कहना है कि चार माह में पार्क तैयार कर लिया जाएगा। इसके तैयार होने में लगभग चार करोड़ रुपये जीडीए खर्च करेगा। पार्क का निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया है।
पत्थरों की चित्रकारी होगी आकर्षण का केंद्र
प्राधिकरण के अध्यक्ष का कहना है कि पार्क को पूरी तरह से हराभरा किया जाएगा, लेकिन सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र होगा पत्थरों पर की गई चित्रकारी व नक्काशी। घूमने के लिए पार्क में चारों तरफ पाथ के साथ -साथ कलाकारों द्वारा तैयार की गई चित्रकारी एवं नक्काशी वाले पत्थर रखे जाएंगे। बीच-बीच में बेंच भी रखी जाएंगी, जिससे घूमने के दौरान थकान लगने पर लोग आराम भी कर सकेंगे। पार्क के चारों तरफ चार दीवारी बनाई जाएगी और मुख्य मार्गो के दोनों तरफ गेट लगाए जाएंगे। पार्क को कूड़ा रहित बनाने के लिए डस्टबिन भी लगाई जाएगी।
छैनी हथौडे़ की थाप पर उभर रही प्रेम-वात्सल्य की भावना
जागरण संवाद केंद्र, गाजियाबाद : पत्थर जब तक रास्ते में पड़ा रहता है तो लोगों से ठोकर खाता रहता है और यही पत्थर किसी मूर्तिकार के हाथ में पड़ जाए तो मंदिर का भगवान बन जाता है। कुछ ऐसे ही बेजान पत्थरों में जान डालने के लिए देश के कोने-कोने से मूर्तिकार कला महोत्सव में आए हैं। छैनी -हथौडे़ से कोई प्रकृति से जुड़े नजारे पत्थर पर उकेर रहा है तो कोई अपने पशु प्रेम को पत्थरों पर दर्शा रहा है। कोई मूर्तिकार मां की ममता को दर्शाने में व्यस्त है तो कोई शांति का संदेश देने के लिए महात्मा बुद्ध को तराश रहा है। कला महोत्सव में देशभर से कलकत्ता, राजस्थान, उड़ीसा, चेन्नई आदि शहरों से 11 मूर्तिकार अपनी प्रतिभा को पत्थर पर तराशने आए हैं।
कोलकाता के अंतरराष्ट्रीय मूर्तिकार तारक गरई दूसरी बार कला महोत्सव में आए हैं। अब तक कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके तारक कलाधाम में शांति का संदेश देने के लिए महात्मा बुद्ध का चेहरा बना रहे हैं।
--उड़ीसा से आए प्रख्यात मूर्तिकार अशोक कुमार महापात्रा महोत्सव में महिला की मूर्ति बना रहे हैं। अशोक बताते हैं कि विरासत में उन्हें ये कला प्राप्त हुई और देश के विभन्न संग्रहालयों में उनकी बनाई मूर्तियां लगी हैं।
--बैंगलॉर से आए मूर्तिकार नागप्पा प्रधानी पत्थर में मां के वात्सल्य को तराश रहे हैं। प्रधानी बताते हैं कि मां वह एहसास है जो हर समय हमारे साथ रहता है, इसलिए उनकी कलाकृति में वात्सल्य रस में डूबी मां की कलाकृति प्राथमिक होती है।
---युवा मूर्तिकार निलेश शिंदे नागपुर से आए हैं और सूर्योदय व सूर्यास्त का समय पत्थर पर उकेर रहे हैं। मूर्तिकला विषय में एमए कर चुके श्िादे बताते हैं कि बेशक आज थ्रीडी पेंिटग्स आ गई हैं लेकिन मूर्ति कला एक ऐसी कला है, जिसे आप हर दृष्टि से देख सकते हैं।
---चेन्नई के ख्याति प्राप्त मूर्तिकार पी इलाचेंझियन पत्थर पर अपने पशु प्रेम को उकेर रहे हैं। इलाचेंझियन किसान पृष्ठभूमि से हैं। वह बताते हैं कि उन्हें पशुओं से बहुत प्रेम है और इस पत्थर पर वह सांड की मूर्ति बना रहे हैं। उनके मुताबिक सांड आजाद प्रवृत्ति का पशु है। जो मानव से डरता भी है और उसे डराता भी है।
--पत्थर पर प्रकृति के विभिन्न आयामों को उकेरने के लिए उदयपुर से मूर्तिकार सीपी चौधरी आए हैं। चौधरी बताते हैं कि ठोस पत्थर पर बारीक कला तराशना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है। उनके मुताबिक मूर्तिकला भावनाओं को बखूबी दर्शाती है।

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